दुमका जिला में कुपोषण की स्थिति नाजुक,पहाडिया बच्चे अधिक कुपोषित

शैलेन्द्र कुमार सिन्हा, दुमका

जिले के गोपीकांदर प्रखंड के चीरूडीह गांव के प्रदीप देहरी का पुत्र उम्र-1 साल गंभीर रूप से कुपोषित हो चुका है,उसे कुपोषण के साथ टी बी की बीमारी भी हो गयी है।प्रदीप देहरी की पत्नी ने बताया कि बच्चे के जन्म के बाद उसे माड पिलाया गया था,जब वह गर्भावस्था में थी,उस समय भी उसने कोई पौष्टिक आहार नहीं लिया था।कुपोषण उपचार केंद्र के डॉ दिलीप कुमार भगत ने बताया कि केंद्र मे अधिकतर कुपोषित बच्चें पहाडिया समुदाय के आते है। केंद्र में उन्हें चिकित्सीय आहार देकर 15 दिनों के बाद धर वापस भेज दिया जाता है,लेकिन बच्चें को धर में संतुलित आहार नहीं मिलने से  फिर से वह कुपोषित हो जाता है।दुमका जिला कुपोषण उपचार केंद्र में 20 बेड है,जहां कुपोषित बच्चों को चिकित्सीय आहार से उन्हें कुपोषण मुक्त किया जा रहा है।यहां आने वाले अति गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों का उपचार किया जाता है।एफ (फार्मूला) 75 के तहत अति गंभीर कुपोषित बच्चे को 15 दिनों तक पतला दुध,मुंढी का पाउडर,3 ग्राम चीनी,3 एमएल वनस्पति तेल और पानी मिलाकर चिकित्सीय आहार दिया जाता है। फार्मूला 100 के तहत 75 एमएल दुध, 7 ग्राम मुढीं पाउडर, 2 ग्राम चीनी पाउडर, 2्र ग्राम वनस्पति तेल के साथ पानी मिलाकर उन्हें भोजन दिया जाता है।कुपोषित बच्चें के साथ आने वाली माँ को प्रतिदिन 100 रूपये सरकार की ओर से दिये जाते है।

कुपोषण उपचार केंद्र की ए एन एम स्वपना मुर्मू ने बताया कि कुपोषित बच्चें जब केंद्र में आते है तो बच्चे का वजन और लंबाई मापी जाती है। उन्होंने बताया कि बच्चों को एक सप्ताह के अंदर दलिया एवं एफ 75 एवं एफ 100 के तहत आहार देना शुरू किया जाता है। कुपोषण उपचार केंद्र दुमका में इलाजरत बच्चें उषा सोरेन, पिता स्माइल सोरेन,उम्र 22 माह, हल्दीपहाडी, शिकारीपाडा, दुमका, साहिल मुर्मू, पिता शेखू मुर्मू, उम्र 8 माह, गोपीकांदर, तनुश्री मांझी, पिता रामेश्वर मांझी, उम्र 21 माह, रोहित टुडू, पिता जोहन टुडू, उम्र 14 माह, अनामिका मुर्मू, पिता डेविड मुर्मू, उम्र 10 माह, स्टेनशिला मुर्मू, पिता सुनील मुर्मू, उम्र 11 माह, रामगढ, बबीता मरांडी, उम्र साढे तीन माह, किरण हेम्ब्रम, उम्र 14 माह, अरविंद टुडू, कांठीकुंड, उम्र 6 माह अति गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार है,जिन्हें चिकित्सीय आहार दिया जा रहा है। केंद्र की न्यूट्रीशिनल कॉउसिंलर नूतन कुमारी बताती है कि अधिकतर माँ एनेमिक होती है, गर्भावस्था के दौरान वे पौष्टिक आहार नहीं लेती है। कई बार तो गर्भवती माता अपने छोटे बच्चें को  स्तनपान कराती है,जिस कारण भी बच्चें कुपोषित जन्म लेते है। उन्होनें बताया कि संताल परगना में अधिकतर माँ एनेमिक है और बच्चें कुपोषण के शिकार है। ए एन एम सर्विल कुमारी बताती है कि कुपोषित बच्चों का उपचार केंद्र में 15 दिनों के बाद उन्हें वापस धर भेज दिया जाता है। ऐसे बच्चें के माता पिता को आंगनबाडी केंद्र में सरकार की ओर से राशन दिये जाने का प्रावधान है एवं बच्चें का वजन और लंबाई का रिर्काड संधारण करने का प्रावधान है,लेकिन ऐसा होता नहीं है।वे बताती है कि कुपोषित बच्चों का फॉलोअप नहीं होता है जिस कारण पुनः बच्चें कुपोषण के शिकार हो जाते है। वे बताती है कि मां को गर्भावस्था के दौरान पोषण की कमी रहती है, कम उम्र में विवाह होता है, कुपोषण के कारणों की जानकारी का अभाव होता है, इसी कारण बच्चें कुपोषित होते है।कुपोषित बच्चें का मानसिक और शारीरिक विकास अवरूद्व हो जाता है,जब माँ ही स्वस्थ नहीं होगी तो बच्चें कुपोषण के शिकार हांगे। झारखंड में गरीबी, अशिक्षा, एवं जागरूकता का अभाव है। झारखंड में  अमरूद, पपीता, कटहल, सहजन का साग, पालक का साग प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसके सेवन से कुपोषण से बचा जा सकता है।

भारत में 5 साल से कम उम्र के करीब 10 लाख बच्चें हर साल कुपोषण के कारण काल के गाल में समा जाते है। एन एफ एच एस की रिर्पोट के अनुसार 40 प्रतिशत बच्चों मे ग्रोथ की समस्या है एवं 60 फीसदी बच्चे कम वजन के शिकार है। गर्भवती महिलाओं को भरपूर पोषण नहीं मिलता, गरीबी मुख्य कारण है। महिलाओं में खून की कमी आम बात है।खून में आयरन की कमी के कारण हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। बच्चों के खानों मे प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स की कमी होने से बच्चे कुपोषित होते है। बलराम जी बताते है कि झारखंड के 50 प्रतिशत आंगनबाडी केंद्रों में बच्चों के वजन मापने का मशीन नहीं की। ग्रामीण क्षेत्रों में मिलनेवाले फल,दाल से कुपोषण दुर हो सकता है, आंगनबाडी केंन्दों में अंडा,दाल पोषण के तहत नहीं दिया जा रहे है। आंगनबाडी केन्द्रों में बच्चों के ग्रोथ चार्ट का संधारण नहीं किया जा रहा है, जिससे बच्चों का सही वजन और लंबाई का पता नहीं चल पा रहा है। बच्चों की सही स्थ्ति की जानकारी के लिए ग्रोथ चार्ट का भरा जाना अनिवार्य है। राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में लडकी की कम उम्र में शादी और मॉ बन जाने से बच्चे कुपोषित जन्म ले रहे हैं।कम उम्र की मॉ ने गर्भधारण के मानकों का पालन नहीं किया और मॉ 6 माह तक बच्चे को स्तनपान भी नहीं कराया, इस कारण से बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे है। इंडियन कॉउसिंल ऑफ मेडिकल रिसर्च का कहना है कि 65 ग्राम दाल बच्चों को दिया जाना चाहिए लेकिन राज्य में 30 ग्राम दाल भी उन्हें नहीं मिल रहा है। झारखंड के प्रमुख प्रोटीन कोदो, मडुआ, मकई, र्कुथी एवं अरहर राज्य से विलुप्त हो रहे है।


Shailendra Kumar Sinhaलेखक परिचय:

शैलेन्द्र कुमार सिन्हा
धर्मस्थान रोड, दुमका 814101, झारखंड
संपर्क: 9546775307

Post Author: News Desk

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