संताली भाषा और साहित्य के यशस्वी साहित्यकार थे बाबूलाल मुर्मू “आदिवासी”- डॉ दिनेश नारायण वर्मा

झारखंड देखो डेस्क : इतिहासकार डॉ दिनेश नारायण वर्मा ने संताली के यशस्वी साहित्यकार बाबूलाल मुर्मू “आदिवासी” की जन्म तिथि 12 जनवरी(1939) के अवसर पर उनकी बेजोड़ साहित्य साधना की विवेचना की और इसकी अनुपम खूबियों को बताते हुए कहा कि उन्होंने लगभग 45 वर्षों तक संताली भाषा और साहित्य को समृद्ध किया।इतिहासकार वर्मा के अनुसार “आदिवासी” जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और कई विद्याओं में उन्होंने अपनी कलम चलाई।वे अपने उसूल के पक्के थे और जीवन में किसी तरह का लाभ पाने के लिए उन्होंने किसी प्रकार का कोई समझौता कभी नहीं किया। उन्होंने आजीवन देवनागरी लिपि में लिखा और इसके पक्ष में अकाट्य तर्क दिये। वे मूलरूप से परम्परावादी थे और देशज संस्कृति की उन्होंने जोरदार वकालत की। इसके फलस्वरूप संताली साहित्य जगत में वे शीघ्र लोकप्रिय और प्रख्यात हो गये। वे एक शिक्षक,लेखक,साहित्यकार,कहानीकार,इतिहासकार और पत्रकार ही नहीं बल्कि समालोचक और सम्पादक (होड़ सम्वाद) के रूप में भी उन्होंने अपनी बेजोड़ प्रतिभा प्रदर्शित की और ख्याति प्राप्त की। उन्होंने प्रसिद्ध संताली पत्रिका होड़ सम्वाद का कई वर्षों तक उत्कृष्ट सम्पादन किया और इसे लोकप्रिय बनाने में अप्रतिम योगदान किया। उन्होंने संताली भाषा,साहित्य व कलाओं के संवर्धन के लिए संताली साहित्य परिषद का संचालन भी किया।उमाशंकर ने उनकी समीक्षा करते हुए लिखा कि “अध्ययनकाल से ही उन्होंने लिखना प्रारम्भ किया।कहानियां एवं कविताएं इनकी बड़ी अच्छी होती हैं। कहानियों में दिसाम भोक्ता, काकीआयो,सोगे सोना और बोतोर बोंगा बहुत ही प्रसिद्ध हैं। कविताओं में मुलुच्,भारोत दिसाम आदि बहुत अच्छी हैं।”

इतिहासकार वर्मा के अनुसार “आदिवासी” जी ने संताली गद्य की भाषा को बखूबी परिमार्जित किया जिससे समकालीन संताली लेखकों,कवियों और साहिकत्यकारों का साहित्यिक मार्ग प्रशस्त हो गया। उन्होंने “आदिवासी” जी की साहित्यिक विशेषताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनकी सबसे बड़ी साहित्यिक विशेषता यह थी कि उन्हें अपनी मातृभाषा संताली के अतिरिक्त हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगला आदि भाषाओं की भी अच्छी जानकारी थी। इतिहासकार वर्मा के अनुसार “आदिवासी” की साहित्यिक उपलब्धियों की समीक्षा करने पर स्पष्ट होता है कि “आदिवासी” ने संताली को एक नवीन अभिव्यंजना से समृद्ध किया। अनेक विद्वानों की नजर में यह उनकी साहित्यिक योगदानों में शीर्ष पर है। इसलिए उन्हें संताली साहित्य का पाणिनी भी कहा गया। इतिहासकार वर्मा ने उन्हें एक संस्था बताते हुए यह जानकारी भी दी कि वे कई शैक्षणिक संस्थाओं और विवि से जुड़े हुए थे। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की। उनकी साहित्यिक उपलब्धियों पर पीएच.डी की उपाधि के लिए किये गये शोध कार्यों से स्पष्ट है कि “आदिवासी” जी संताली भाषा और साहित्य के जाने माने मूर्धन्य साहित्यकार थे।

Post Author: Sikander Kumar

Sikander is a journalist, hails from Dumka. He holds a P.HD in Journalism & Mass Communication, with 15 years of experience in this field. mob no -9955599136

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