अद्भुत कहानी बर्फ की

ठंड अपनी अंतिम पढ़ाव पर है। गर्मी दस्तक दे रही है। गर्मियों के आने के साथ-साथ जिसकी माँग सबसे चरम पर होती है वो है बर्फ।  फिर चाहे शर्बत का गिलास हो, नींबू पानी का या जाम का। आज भले वैश्वीकरण के दौर मे फ्रिज शहर गाँव के घर घर मे पहुँच चुका है, लेकिन पहले बर्फ इस देश के लिए एक विलासिता से कम नहीं था, जिसकी पहुँच केवल समृद्ध घरों मे ही थी। बर्फ का व्यापार हमेशा से ऊंची मुनाफे वाला था। मुगल काल मे ये बर्फ हिमालय से रावी नदी के रास्ते दिल्ली जैसे बड़े शहरों मे आयात की जाती थी। अकबर के शासन काल मे लाहौर मे कई दुकाने थी जो आयात की हुई बर्फ़ को गोदामों मे संग्रह करते और काटकर निजी जरूरतों के लिए लोगों को बेचते थे। लेकिन कीमत इतनी कि सिर्फ रईस लोग ही खरीदने मे समर्थ थे। 

मुगलों के बाद अंग्रेजों के समय मे आते है। भारत के गरम ऊष्णकटिबंधीय मौसम मे अंग्रेजों के आने के बाद बर्फ़ की माँग बढ़ गई। कोलकाता के पास हूगली मे ठंडे पानी को छोटे छोटे कटोरे मे डाल कर एक तरह का कीचड़दार बर्फ बनाया जाता था जो हूगली आइस के नाम से जाना जाता था। लेकिन यह बर्फ़ किसी पात्र को ठंडा करने के लिए इस्तेमाल किया था, इसे जिन या शर्बत के गिलास मे नहीं डाला जा सकता था। 

13 सितम्बर 1833 को कोलकाता मे अमेरिका के न्यू इंग्लैंड से जहाज के द्वारा बर्फ़ की पहली खेप पहुँची, जिसे देखने कोलकाता बन्दरगाह पर काफी भीड़ उमड़ी।  यह हूगली आइस जैसा बिल्कुल नहीं था।  ठोस, साफ और चमकदार। अमेरिका के उत्तरी झीलों का पानी जो सर्दियों मे जमकर बर्फ़ बन गया था, कुल्हाड़ी की मदद से काटा गया। फिर घोड़ों से ढोकर जहाजों मे लादा गया। उस समय जहाजों मे बर्फ रखने की कोई व्यवस्था नहीं होती थी। जहाज अमेरिका के बोस्टन से निकालकर समुद्र मे चार महीने का सफर तय कर कोलकाता पहुँचता था। इस सफर के दौरान खेप का एक बड़ा हिस्सा पिघल कर पानी बन बह जाता था। लेकिन भारत मे इसकी बढ़ती माँग ने इस व्यापार को काफी मुनाफे का सौदा बना दिया था। बोस्टन के फ्रेडरिक ट्यूडर जो “आइस किंग” के नाम से प्रसिद्ध थे, अगले कुछ दशकों तक भारत मे बर्फ के निर्यात से बेशुमार संपत्ति बनाई। 

1878 मे बेंगल आइस कंपनी ने कृत्रिम बर्फ़ का कोलकाता मे उत्पादन आरंभ किया। सस्ते घरेलू बर्फ़ की ऊपलब्धता ने अगले कुछ सालों मे ट्यूडर के व्यापार को बंद कर दिया। जल्द ही बम्बई, कोलकाता और मद्रास मे बर्फ़ जमा करने ले लिए शीत घरों का निर्माण किया जाने लगा। इस तरह विज्ञान के विकास ने बोस्टन – कोलकाता बर्फ़ मार्ग को एक इतिहास बना दिया।

Post Author: Binod Mandal

A programmer by profession and a blogger by passion who turns into passionate photographer too, loves to travel and listen to Indian Ocean.

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