माघ मकरगत रवि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
(रामचरितमानस-बालकाण्ड)
झारखण्ड देखो डेस्क:- इस मान्यता के अनुसार माघ महीने में सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता तभी मनाया जाता है मकर संक्रान्ति पर्व। तीर्थराज (प्रयाग) में श्रद्धालुओं की होती है भीड़। यहाँ से हटकर देखें तो इस पर्व पर लोग देश की विभिन्न नदियों, सरोवरों में भी स्नान करते हैं, देवालयों में पूजा-अर्चना करते और सर्वाधिक भीड़ होती है गङ्गासागर में।
बावजूद इन पवित्र स्थलों के धर्मग्रन्थों में खोजें तो महिमा सर्वाधिक ऊँची दिखती है अङ्ग क्षेत्र के मन्दार पर्वत की जो मन्दराचल और मनार नामों से भी सम्बोधित होता है। मन्दार को इतना पवित्र मानते इस क्षेत्र के लोग कि मकर संक्रान्ति पर्व को भी कहते हैं “मनार।” धर्मग्रन्थों और लोकविश्वास के अनुसार इस पर्वत की मथनी और सर्प वासुकि की नेती के रूप में प्रयोग कर देवों व दानवों ने सागर का मन्थन किया था जिस दौरान प्राप्ति हुई थी अमृत की जिसे पीकर देवता हो गये अमर। उस घटना के पूर्व से लेकर आजतक भक्ति और आस्था-केन्द्र के रूप में दिखता है यह पर्वत।
वामनपुराण के अनुसार शङ्कर का आदिवास-स्थान है मन्दार और शङ्कर की ससुराल है कैलाश। इसी कारण कैलाश महिमामण्डित हुआ।
भविष्य पुराण के अनुसार वशिष्ठ और अगस्त्य इन श्रेष्ठ महर्षियों की उत्पत्ति हुई थी मन्दार पर।
धर्मग्रन्थों के अनुसार भारत से लङ्का तक सेतु निर्माण में अग्रणी भूमिका निभायी थी नल नामक शिल्पी ने। वाल्मीकीय रामायण के अनुसार नल की माँ ने मन्दार पर ही तप कर इस प्रकार के गुणवान पुत्र की प्राप्ति का वरदान पाया था।
श्रीमद्भागवत के अनुसार दैत्य हिरण्यकशिपु ने भी मन्दार पर तप कर वरदान पाया था।
इस प्रकार अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनके आधार पर निष्कर्ष यह है कि प्रयाग, गङ्गासागर हो या काशी, इन सबसे प्रचीन धर्मस्थल है पवित्र मन्दार जहाँ मकर-संक्रान्ति पर्व पर होती है अपार भीड़। किसी दूसरे तीर्थस्थल की बात करें तो संसार का प्राचीनतम तीर्थस्थल दिखता है त्रिकूट नाम का पर्वत। यह भी है अंग क्षेत्र में ही है जिसपर अलग से बन सकता है एक शोधग्रन्थ।
लेखक : पंडित अनूप कुमार वाजपेयी,दुमका।
दूरभाष : ८००२ १२१३१४