तीसरे लॉकडाउन का तीसरा दिन, लगभग डेढ़ महीने से पूरा देश अपने घरों में बंद हैं। लाखों लोग अपने घर, जिले, राज्य से दूर है, परेशान है। इसी बीच केंद्र और राज्य की सरकारों ने अपने राज्य के बहार अटके हुए मजदूरों और छात्रों को वापस अपने घर लाने के प्रयास में जुटी हुई है जो कि वाकई सराहनीय है। लेकिन मजदूरों को ट्रैन से लाने में टिकट के भुगतान के मामले में जो असमंजस की स्थिति पैदा हुई वह बेहद शर्मनाक है। प्रवासी मजदूर जिनके पास अंधकार भविष्य के अलावा कुछ भी नहीं है, महामारी से इतने डरे हुए है कि किसी भी कीमत पर अपने घर जाना चाहते है, उनसे टिकट के पैसे लिए गए। इससे पता चलता है की केंद्र सरकार और राज्य की सरकारों के साथ तुकबंदी में गंभीर खामियाँ है। सिर्फ इतना ही नहीं, केंद्र और रेल मंत्रालय के बीच भी समन्वय का अभाव है। अब चाहे सरकारें जो भी सफाई दे, लेकिन इतना हो तय है कि मजदूरों के सामने स्थिति स्पष्ट नहीं थी। जो कीमत चुका सकते थे उन्होंने चुकाए, जिनके पास नहीं थे उन्होंने दोस्तों या रिश्तेदारों से उधार लेकर टिकट ख़रीदे। इंडिया टाइम्स की एक रिपोर्ट की माने तो मजदूरों को सिर्फ रेल टिकट के ही पैसे नहीं देने पड़े, बल्कि मेडिकल जाँच और सर्टिफिकेट के भी पैसे वसूले गए। घर आने को आतुर प्रवासी करें तो क्या करे?
देश में कोरोना से संक्रमित लोगो को संख्या 50 हज़ार छूने को है। तीसरा देशव्यापी लॉकडाउन 17 मई को ख़त्म हो जाएगा, लेकिन उसके बाद क्या? कुछ राज्य की सरकारों ने हो इसे बढ़ाने का फैसला कर लिया है। झारखण्ड में भी स्थिति कुछ ज्यादा ठीक नहीं है। अभी भी लाखो लोग राज्य से बाहर फँसे है और अपने घर आना चाहते है। सिर्फ दूसरे राज्य ही नहीं काफी लोग राज्य के अलग-अलग हिस्से में फँसे है। अब यह सरकारों पर है कि वे कैसे लोगो को अपने अपने घर पहुँचाती है। दोनों सरकारों को दूरदर्शिता के साथ काम करना होगा ताकि लोगो में भ्रम की स्थिति न बने।