रामगढ़ जिले का राजरप्पा माँ छिन्नमस्ता या छिन्नमस्तिके के मंदिर के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. रामगढ़ कैंटोनमेंट से 28 किलोमीटर की दुरी पर, भैरवी और दामोदर नदी के संगम स्थल पर स्थित यह मंदिर हिन्दुओं के प्रमुख शक्ति-पीठों में से एक है. भैरवी नदी जिसे यहाँ के निवासी भेड़ा भी कहते है, लगभग २० फीट की ऊंचाई से गिरते हुए दामोदर नदी से मिलती है. जिसके फलस्वरूप एक झरने का निर्माण करती है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. यहाँ नौका-विहार का भी आनंद लिया जा सकता है.
माँ छिन्नमस्तिके मंदिर – एक शक्तिपीठ
माँ छिन्नमस्तिके का मंदिर काफी पुराना है और वेदों एवं पुराणों में राजरप्पा का उल्लेख मिलता है. इस मंदिर को असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुसरे सबसे शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है. बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, असम, नेपाल इत्यादि जगहों से माँ छिन्नमस्तिके के भक्तगण माँ के दर्शन को आते है. मंदिर का बनावट-शैली भी कामाख्या मंदिर से काफी मिलता जुलता है. मंदिर के अन्दर माँ छिन्नमस्तिके की मूर्ति स्थापित है, जिसका सर कटा है और इसके गले से दोनों ओर बहती हुई रक्तधारा दो महाविद्याएँ ग्रहण करती हुई दिखाई डे रही है. माँ के पैर के नीचे कमलदल पर लेटे है – कामदेव और रति. राजरप्पा के सिद्धपीठ के अलावा यहाँ पर महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर आदि भी दर्शनीय है. हर मंगलवार और शनिवार को माँ काली के पूजा के बाद बली का प्रचलन है. मकर संक्रांति के दिन यहाँ काफी संख्या में श्रद्धालु आते है. इस दिन मेले का भी आयोजन किया जाता है. छिन्नमस्तिके माता का मंदिर तंत्र-साधना करने वालों का भी प्रमुख स्थल है. नवरात्रि और प्रत्येक माह के अमावस्या को यहाँ देश-विदेश से तंत्र-साधना करनेवाले आते है.
माँ छिन्नमस्तिके की उत्पति
एक बार भगवती भवानी अपनी दो सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद भवानी के साथ-साथ दोनों सहलियों को तेज भूख लगी। जिसके कारण उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियों ने भी भोजन मांगा। देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा। लेकिन वह बार-बार भूख लगने की हट करने लगी। बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह करते हुआ कहा – मां तो अपने बच्चों को तुंरत भोजन प्रदान करती है।
ऐसा सुनकर भवानी ने अपने खडग से अपना ही सिर धड़ से अलग कर दिया। कटा हुआ सिर उनके बाए हाथ में जा गिरा और तीन रक्त धराएं बहने लगी। वह दो धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगी। और तीसरी धारा जो ऊपर की ओर बह रही थी, उसे स्वयं माता पान करने लगी। तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं।
कैसे पँहुचे?
राजरप्पा का सिद्धपीठ रामगढ़ से 28 किमी, हजारीबाग से 65 किमी, रांची से 78 किमी और बोकारो से 60 किमी दूर है. रांची से बोकारो NH-23 सड़क पर चितरपुर नाम का क़स्बा है, जहाँ से जंगलो के बीच 9 किमी का रास्ता आपको माँ छिन्नमस्तिके के मंदिर तक ले जाएगी.
रामगढ़ के घने जंगलों के बीच यह स्थल प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुपम दृश्य प्रस्तुत करता है. माँ की पूजा-अर्चना के साथ-साथ यह जगह पिकनिक के लिए भी लोकप्रिय है. आने वाले यहाँ नौका विहार का भी आनंद उठाते है. दामोदर नदी यहाँ शांत है जबकि भैरवी चंचल. शाम के बाद यह इलाका लगभग चुपचाप हो जाता है.