संताल विद्रोह 1855-1856 के विस्मृत नायकों पर शोध आलेख


झारखंड देखो/प्रतिनिधि:फरक्का(मुर्शिदाबाद) इंडियन काउन्सिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च, नई दिल्ली (आइ.सी.एस.एस.आर, नई दिल्ली) द्वारा सम्पोषित और सेंटर फोर स्टडी ऑफ सोशल एक्लुजन एंड इनक्लुजन पोलिसी,फैकल्टी ऑफ सोशल साइंसेस,बनारस हिन्दू विवि,वाराणसी (उत्तर प्रदेश) द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार 26–27 मार्च 2002 में एकेडमिक फोरम (दुमका,झारखंड) और स्टडी एंड रिसर्च सेंटर (रामपुरहाट, पश्चिम बंगाल)) के दो स्कॉलर-सदस्यों का संयुक्त शोध आलेख प्रस्तुति हेतु चयनित किया गया है। इस वि.वि.में राजनीति शास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक और राष्ट्रीय सेमिनार के निदेशक डा.अमरनाथ पासवान नें मेल से इस चयन की सूचना दी और इन स्कॉलर-सदस्यों को संपूर्ण आलेख प्रेषित करने को कहा। प्राप्त जानकारी के अनुसार सेमिनार के थीम- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विस्मृत नायक- के आलोक में एकेडमिक फोरम के सचिव और स्टडी एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक- निदेशक व स्कॉलर-सदस्य क्रमश: डा.दिनेश नारायण वर्मा (अवकाश-प्राप्त प्राध्यापक) और प्रो.बापन कुमार दास (इतिहास विभाग,प्रो.एस.एन.एच.कालेज, फरक्का,मुर्शिदाबाद,पश्चिम बंगाल)के शोध आलेख का विषय है –संथाल कोवलिया एंड राम मांजी–अनसंग हेरोज ऑफ संताल इन्सरेक्शन ऑफ 1855- 1856। ज्ञातव्य है कि अविभाजित बंगाल की एक बड़ी ऐतिहासिक घटना संताल विद्रोह 1855- 1856 के विभिन्न पहलुओं पर डा. वर्मा विगत कई वर्षों से शोध कार्य में सक्रिय हैं और विभिन्न दृष्टिकोणों से संताल विद्रोह पर उनकी पांच पुस्तकों के अलावा विभिन्न समाचार पत्रो,सोवेनिर,रिसर्च जरनलों में उनके कई आलेख भी प्रकाशित हो चुके हैं। शोधक,ए जरनल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च, (आइएसएसएन 0302-9832-पीर रिव्यूड रेफर्रड जरनल,यूजीसी.लिस्टेड) जयपुर,राजस्थान में डा.वर्मा के संताल विद्रोह पर कई शोध आलेख प्रकाशित हुए। साम्राज्यवदी दृष्टिकोण के अलावा डा. वर्मा नें राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से भी संताल विद्रोह की व्यापक विवेचना की और संताल विद्रोह की साम्राज्यवदी नजरिये का प्रामाणिक ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर खंडन किया। इसी बीच डा. वर्मा के साथ प्रो.दास भी संताल विद्रोह पर शोध कार्यों में संलग्न हो गये और वन्यजाति (नई दिल्ली ),वियोन्ड डिसिपलिन्स(पटना,बिहार) और आइडियल रिसर्च रिव्यू (पटना,बिहार) में उनके अनेक शोध आलेख प्रकाशित हुए। प्रो.दास ने बताया कि संताल परगना के क्षेत्रीय इतिहास (1757-1947) और संताल विद्रोह 1855-1856 के विभिन्न उपेक्षित ऐतिहासिक पहलुओं पर वे डा. वर्मा के साथ शोध और प्रकाशन कार्यों में सक्रिय रूप से संलग्न हैं। उन्होंने साम्राज्यवादी पाश्चात्य लेखकों और भारतीय इतिहासकारों की संताल विद्रोह पर प्रकाशित रचनाओं की जनाकरी देते हुए कहा कि संताल विद्रोह से सम्बन्धित कई ऐसे ऐतिहासिक पहलू हैं जो आज तक उपेक्षित हैं। उनके अनुसार संताल विद्रोह के अग्रणी नायकों सिदो,कान्हू,चांद और भैरव के अलावा इस विद्रोह में अन्य अनेक नायकों की भी बड़ी अग्रणी भूमिका थी क्योंकि अविभाजित बंगाल के एक बड़े भू-भाग पर यह विद्रोह शीघ्र ही प्रचारित-प्रसारित हो गया था। पर इसके सभी नायकों की उपलब्धियों का उल्लेख इतिहास की पुस्तकों में नहीं हैं क्योंकि अधिकांश लेखकों की रचनाएं कोलोनियल रुाोतों पर ही आधारित हैं। उन्होंने कहा कि इन लेखकों ने समकालीन रुाोतों की पूरी तरह से उपेक्षा कर दी जिसमें इनमें वर्णित नायकों की क्रांतिकारी भूमिका की जानकारी किसी को नहीं है। इनमें समकालीन बंगाल से प्रकाशित विभिन्न सामाचार पत्र मुख्य हैं जिनके संवाददाताओं ने संताल विद्रोह के समय विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं की जमीनी सूचना प्रेषित की और विद्रोह के विभिन्न पहलुओं पर टीका-टिप्पणी की। प्रो. दास ने कहा कि इन में द हिन्दू पैट्रिओट,द बंगाल हुरकारू और द फ्रेंड ऑफ इंडिया आदि समाचार पत्र मुख्य हैं। इनके संवाददाताओं ने बड़ी नीर्भिकता पूर्वक कार्य किया और सम्बन्धित घटनाओं की ईमानदारीपूर्वक व्यापक रिपोर्टिंग की। इसलिए इन समाचार पत्रों के विभिन्न अंकों में कई नायकों की भूमिका वर्णित हैं। उन्होंने बताया कि इन्हीं उपेक्षित नायकों में शामिल संथाल कोवलिया (संताल कोवलिया) और राम मांजी (राम मांझी) की क्रांतिकारी भूमिका की विवेचना सेमिनार में प्रस्तुत किये जाने वाले शोध आलेख में की गई है और समकालीन कथित प्रामाणिक रुाोतों के आधार पर यह स्पष्ट किया गया है कि कम्पनी सरकार के अधिकारियों की नजर में ये विद्रोह के मुख्य नायकों से ज्यादा खतरनाक थे।

Post Author: Sikander Kumar

Sikander is a journalist, hails from Dumka. He holds a P.HD in Journalism & Mass Communication, with 15 years of experience in this field. mob no -9955599136

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *