लेखक :डॉ विनोद कुमार शर्मा
असिस्टेंट प्रोफेसर
निदेशक
मानसिक स्वास्थ्य परामर्श केंद्र,
मनोविज्ञान विभाग,
एस पी कॉलेज, दुमका।
झारखण्ड देखो डेस्क :जीवन अनमोल है। मूल्यवान है। यह ईश्वर का दिया हुआ वरदान है। फिर जीवन के साथ अभद्र व्यवहार क्यों? इतनी व्यवहारिकता क्यो? जरूरत है जीवन उद्देश्य को भी समझने की जो पशुओं के जैसा ना होकर अरस्तू के विचार में सामाजिक प्राणी वाला होना चाहिए। जीवन परमात्मा के साथ संबंध जोड़ लेना भी मात्र नही है। बल्कि जीवन रिश्तों को ताउम्र निभकर चलने की होनी चाहिए। जीवन लक्ष्य मन के विचारों से खेलना या कार्य करना मात्र ना होकर जीवन की सभी सफल संभावनाओं के द्वार खोलते हुए सामाजिकता में जीवन जीवन जीया जाना चाहिए। दार्शनिक चिंतक ओशो का भी मानना है कि जीवन का उद्देश्य सब चीजो के लिए जीना होना चाहिए।अर्थात एक अर्थ में तो व्यक्ति विशेष को समाज की आवश्यकताओं के लिए भी जीना उतना ही जरूरी है जितना कि व्यक्ति के खुद के लिए जीना चाहता है। यही वो भावनात्मक रिश्ते होते है जिसकी निरंतरता हर परिस्थिति में आवश्यक होता है। आमतौर पर लोगों से मिलना उनसे जी भर बातें कर व वांछित संवेगों को अभिव्यक्त कर चलना ही मात्र रिश्ते का आधार है तो यह बात एकपक्षीय होगा। बल्कि कहना यह होगा कि रिश्ते वहीं सही व मजबूत माने जाते जो भावनाओं को समझते है। मात्र बोल से समझने की नही बल्कि देखकर भी समझने की होती है। उसी प्रकार पास होने से ही रिश्ते नही प्रगाढ़ हुआ माना जाता है बल्कि दिलों की जुड़ाव जरूरी होता है। जहां दूर की धड़कनें भी पास की सुनाई देती है।तकनीकी भाषा में कहे तो यह दिलो की कनेक्टिविटी है जो रिश्तों के वर्चुअल अर्थात ऑनलाइन बने रहने से भी होता है। यह अलग बात है कि मिलकर बातें करने का जो प्राकृतिक आनंद व अनुभव होता है वो कृतिम रूप से निर्मित तकनीकों साधनों से संभव नही। लेकिन थोड़ी स्वाभविक स्पर्शीय व तत्क्षण नजदीकी अनुभवों को तटस्थ कर दे तो संवेगों का उसतक का अनुभवों इस तकनीकि वर्चुअल माध्यमों से भी हो जाता है। कुछ सीमाओं को तटस्थ कर चले तो यहाँ भी वो सारी बातें व व्यवहारें देखें व दिखाए जाते है, सीखे व सिखाये जाते है जो वास्तविक जिंदगी में होता है। इस वर्चुअल व्यवहारों का फायदा यह होता है कि बिना परेशानी व ख़र्चा के घर बैठे उन तमाम रिश्तों को निभाते है, कार्यों का संपादन करते है व लोगों को अपेक्षित सलाह व तकनीकि या विशेष ज्ञान का लाभ भी पहुँचाते है। जिसके लिए समय की ना कोई पाबंदी है ना वैसी कोई बाध्यता ही। डिजिटलाईजेसन के युग मे वर्त्तमान हालात पर नियंत्रण रखते हुए मानव संवेदना को सुखद व व्यवस्थित रखने में इसकी सराहनीय भूमिका है। डिजिटलाईजेसन ने वर्चुअल तकनीकि का अवसर सुनहरा देकर ना केवल रिश्तों की साख को सतत व सुंदर बनाए बैठा है बल्कि दूर रहकर भी पास का एहसास दिलाता है। वीडियो कॉलिंग हो या कांफ्रेंसिंग या फेस टू फेस बातें करने का कोई अन्य एप्प या माध्यम सभी मानवीय सामाजिक व पारिवारिक रिश्तों को सुरक्षित व मजबूत कर चलने का मार्ग प्रशस्त करता है। जो कोविड-19 के दौर में इसके साथ जुड़ कर चलना उतना ही आवश्यक व सुरक्षित कदम है। यह सोचना कि संवेगों की अभिव्यक्ति लोगों मिलकर ना होने से मन मे तनाव या अवसाद उत्पन्न होता है औऱ जिससे लोग मन की नकारात्मक विचारों के प्रभाव में आकर आत्महत्या कर लेते है तो ये तमाम बातें बेतुका व अपरिपक्वता का हुआ जाना जाएगा। जबकि व्यक्ति का व्यक्तित्व जीवन की गत्यात्मकता को वातावरण में वांछित व प्रशंसनीय ढंग से अभियोजित कर चलने का नाम है। किसी की प्रकार की विषम परिस्थितियों में व्यक्ति को अपने मनोशारीरिक संगठन को बनाये रखने की जरूरत है। विनाशक या अत्यन्त कष्टदायी व कोरोना जैसे वैश्विक महामारी के उत्पन्न होने के बावजूद उद्वेलित व आतंकित ना होकर धैर्य, साहस व आत्मविश्वास के साथ उन विषम परिस्थितियों पर विजयी होने का कोई ठोस उपाय किया जाना चाहिए ना कि हिम्मत हारकर मन को उदास या चिंता व तनाव मेंविक्षप्त कर लेना चाहिए। ऐसा होने से अन्य लोगों में भी कमजोर मनोबल उत्पन्न होने का भय उठ खड़ा होता है। ऐसा ना कर लोगों को चाहिए कि वे रोकथाम के उन सभी सार्थक उपायों को खुद आत्मसात करें व समाज के अन्य लोगों को भी प्रेरित करें । साथ ही कोरोना की विपदा में आवश्यक ‘सामाजिक दूरी’ के नियमो को निभाते चले। यथार्थ से स्थानांतरित कर ‘वर्चुअल व्यवहारों’ को अपनाएं। कहना ना हो सामाजिक दूरी के भी अपने अलग फायदे है। फायदे ये है कि लोग इस संक्रमण रोग से ना केवल अपने को सुरक्षित रखेंगे व कोरोना का फैलाव थमेगा व कोविड-19 का नामोनिशान मिटेगा बल्कि लोग अपने हर व्यवहारों पर नियंत्रण कर पाने में सक्षम रहेंगे। भीड़ जैसी हालात नही उत्पन्न होगा जिससे ना केवल चोरी, जेबकतरी, धक्कम-मुक्की आदि जैसी नापसंद व्यवहारों से निजात मिलेगी बल्कि आगे-पीछे के लोगों की व्यवहारिक मंशा का भी स्पष्ट तौर पर पता चलेगा। इन सबों से भिन्न उन महिलाओं के लिए सुखद बात होगी जो अक्सरहाँ छेड़खानी व शरीर को रगड़कर या छूकर कर चलने वाले मनचले या विचलित किस्म के लोगों से शत प्रतिशत निजात भी मिलेगी। ऐसे हालात में बाजार, देवालयों , पार्टी या शादी के अवसरों में जाने वाले महिलाओं को राहत होगी जो हमेशा ऐसे अवांछनीय व्यवहारों के घटित हो जाने से भयभीत रहती है। जो कहे उनके अचेतन मन का एक अभिशप्त व अवांछनीय अनुभव होता है। इतना ही नही जीवन में सामाजिक दूरी के अनुबंधन या आदत में ढल जाने से अपराध से लेकर सड़क दुर्घटनाओं में भी कमी आएगी जो जल्दीबाजी की व्याकुलता में धैर्य की कमी से होती है। इस सामाजिक दूरी जिसे 2 गज या छः फिट की शारीरिक दूरी भी कहा जाता है से जहाँ कई रोग संक्रमणों व दुर्घटनाओं से बचेंगे वहीं सामाजिक मर्यादा व नैतिकता भी बढ़ोत्तरी दिखेगी जहां रिश्तों की प्रगाढ़ता व अच्छाई के लिए एक निश्चित दूरी से व्यवहार करना भी भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में आवश्यक होता है। एक दृष्टि से कहे तो ‘दूर का ढोल सुहावन’ कहावत को भी बल मिलेगा जो संभवतः सामाजिक दूरी का रहना भी आवश्यक बतलाया। इसलिए कोरोना को मात देने ले लिये वर्चुअल रिश्ते को तबतक के लिए बरकरार रखे व सामाजिक दूरी ना कि भावनात्मक दूरी की सार्थकता का लाभ उठाते चले जिसमे पूरी मानव समुदाय का कल्याण छुपा है।